How To Take Criticism Positively: इस दुनिया में कोई भी काम हो, अच्छा या बुरा, उसके हमेशा दो पहलू होते हैं। अगर कुछ लोग निंदा करते हैं तो कुछ तारीफ़ भी करते हैं।कोई अपना या पराया अगर हमारी बुराई भी करता है तो हमें यह समझना ज़रूरी है कि वो हमारी इम्प्रूवमेंट के लिए कह रहा है या फिर यह उसकी इनसिक्योरिटी बोल रही है।
याद रखें कि संत-महात्मा या वैज्ञानिक हों, दुनिया में कभी ना कभी सब की निंदा होती रही है। उन्हें चाहने वालों के साथ जलने वाले भी होते हैं। आइये जानते हैं कि हम किस तरह से अपनी निंदा या क्रिटिसिज्म को पॉज़िटिव वे में ले सकते हैं।
Living Art: कैसे लें क्रिटिसिज्म को पॉजिटिवली
1. रियेक्ट करने से पहले थोड़ा सोच लें
चाहे कोई कॉल हो, मेसेज या फिर फेस तो फेस, क्रिटिसिज्म पर उसी वक़्त रियेक्ट कभी न करें। कुछ भी रिप्लाई करने से पहले एक गहरी साँस लें और उस पर थोड़ा सोचें। हो सकता है आपको इस में कुछ पॉजिटिव मिल जाए।
2. अच्छे से सुनें
जब आपको महसूस हो कि कोई आपको क्रिटिसाइज़ कर रहा है, पहले तो उनकी बात को अच्छे से सुनें। फिर उनकी बात को रीफ्रेज़ करें। यह पॉसिबल है कि वे आपसे कुछ और कहना चाह रहे हों और आप कुछ और ही समझ रहे हों। ऐसे उनकी पूरी बात समझने में आसानी होगी।
3. करें शुक्रिया अदा
किसी द्वारा आपकी की गई बुराई आपके अंदर बहुत इंप्रूवमेंट्स ला सकते हैं। यह सोचते हुए अपने क्रिटिक का शुक्रिया अदा करें।आपको फीडबैक देने के लिये उनके निकाले गये टाइम और एफ़र्ट्स के लिए शुक्रिया कहें। लेकिन इसका यह मतलब कभी भी नहीं किआप उनकी बातों से सहमत हैं।
4. पूछ लें उनसे कुछ सवाल
क्रिटिसिज्म को कंस्ट्रक्टिव बनाने की कोशिश में आप उनसे अपने काम के कॉण्टेक्स्ट में कोई उदाहरण पूछ सकते हैं। उनसे से यह भी पूछें कि क्या उनके पास आपका काम भविष्य में इम्प्रूव करने के लिए उनके पास कोई अच्छा सोल्यूशन है।
5. बात को बंद कर दें या फिर बाद में फॉलो-अप के लिए कहें
अपनी बात का सोल्यूशन मिलने पर दोबारा शुक्रिया अदा कर बात को बंद कर दें। अगर क्रिटिसिज्म आपके मैनेजर या बॉस के द्वारा होतो उन्हें इसी बात पर दोबारा मिलने की सलाह दें। इस तरह से आप एक ही चीज़ दोबारा दोहराने से बच सकते हैं।
हम हमेशा क्रिटिसिज्म को नेगेटिव लेने की गलती कर बैठते हैं, लेकिन अपनी बुराई या निंदा को पॉजिटिवली के कर हम अपनी गलतियों को सुधार कर या पहले से भी अच्छा काम कर के ख़ुद को बेहतर इंसान बन सकते हैं। ज़रूरत है तो बस अपना नज़रिया बदलने की।